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घर की याद-5 / चन्द्रकुंवर बर्त्वाल
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विष पान किया मैंने जग का
जिससे औरों को अमृत मिले
जिससे औरों को फूल मिलें
मैंने काँटे ही सदा चुने
वह विष अंगों में उबल रहा
वे काँटे उर में कसक रहे