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घर घर यहै कहानी / प्रदीप शुक्ल
Kavita Kosh से
सड़क किनारे बनी दुकानें
ख्यात मरैं बिनु पानी
चले जाव गाँवन मा भईय्या
घर घर यहै कहानी
उलरे उलरे
फिरैं मुसद्दी
अंट शंट गोहरावैं
आधा बिगहा खेतु बेंचि कै
दारू ते मुंहु ध्वावैं
लरिका करै मजूरी, घर मा
कढ़िलि रहीं जगरानी
चले जाव गाँवन मा भईय्या
घर घर यहै कहानी
जी जमीन का
बप्पा गोड़िनि,
दादा औ परदादा
जहिमा पानी कम, पुरिखन का
मिला पसीना जादा
बंजर होईगै धरती वहि पर
जाय न कुतिया कानी
चले जाव गाँवन मा भईय्या
घर घर यहै कहानी
सिटी बनी स्मार्ट
हुआँ पर
करिहैं चौकीदारी
नंबर वन के काश्तकार जो
अब तक रहैं मुरारी
कालोनी के पीछे डरिहैं
आपनि छप्पर छानी
चले जाव गाँवन मा भईय्या
घर घर यहै कहानी