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घुळ‘र बणतो दूजो बादळ / लक्ष्मीनारायण रंगा
Kavita Kosh से
अकास मांय
पंख पसार्यां
उडतो जारियो है
अमर पंछी है
अमर गीत गावतो
जिकौ
देखतां-देखतां ही
जळ-पिघळ जावै
सूरज री अगन सूं अर
थोड़ी ताळ पछै
उण राख मांय सूं
उड़तो निजर आव
दूजौ अमर पंछी