घूमता है बस्तर भी / पूनम वासम
पृथ्वी घूमती है अपनी धुरी पर
कि पृथ्वी का घूमना तय क्रम है
अन्धेरे के बाद उजाले के लिए
कि घूमती है पृथ्वी तो घूमता है
संग-संग बस्तर भी
पृथ्वी की धुरी पर !
पृथ्वी घूमती है अपनी धुरी पर तेज़ी से
कि घूमता है बस्तर भी उतनी ही तेज़ी से
इसकी-उसकी तिज़ोरी में
गणतन्त्र का उपहास उड़ाता,
काले धन की तरह
छिपता-छिपाता ।
पहाड़ों की तलहटी और जंगलों की ओट से
जब भी झाँकता है,
दबोच लिया जाता है
किसी मेमने की तरह !
पृथ्वी घूमती है अपनी धुरी पर
कि घूमता है बस्तर भी
इसकी-उसकी कहानियों में
चापड़ा, लान्दा, सल्फ़ी, घोटुल, चित्रकूट के
बहते पानी में बनती इन्द्रधनुष की परछाइयों-सा
जब भी कोशिश की बस्तर ने
सूरज से सीधे साँठ-गाँठ की...
निचोड़कर सारा रस
तेन्दू, साल, बीज की टहनियों पर तब-तब
टाँग दिया गया बस्तर को सूखने के लिए !
पृथ्वी घूमती है अपनी धुरी पर
कि घूमता है बस्तर भी देश-विदेश में
उतनी ही तेज़ी से
किसी अजायबघर की तरह...
जिसे देखा, सुना और पढ़ा तो जा सकता है
किसी रोचक क़िस्से-कहानी में
बिना कुछ कहे निःशब्द होकर !
पृथ्वी घूमती है अपनी धुरी पर
कि घूमता है बस्तर भी
अपने सीने में छुपाए पक्षपात का ख़ूनी खँज़र !
न जाने वह कौनसी ओज़ोन परत है...
जिसने ढँक रखा है
बस्तर के हिस्से का
सारा उजला सबेरा ?