भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
चना / निलय उपाध्याय
Kavita Kosh से
बनिया-
बोरा के छल्ली लगाई आ
इन्तजार करी
कि बढ़ि जाय चना के भाव।
भड़भूँजा भूँजी
आ बड़बड़ाई-
चना के छपन सवाद।
आदमी जइसन
मुकमिल दुनिया होले चना के
जे महसूस करी, ले आई
खेत में
ठीक नाक के जरि, जहाँ टेढ़ रहे
खुली दुआर
अरे बाप!
अतना बड़हन घर
इहवाँ त पूरा उमिर
गँवावल जा सकेला
बिना कवनो खौफ के
सचो-
इहो एगो खुशिए बा जालन कि
दुनिया चाहे जतना
बड़हन होखे
चना से छोटे होले।