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चलता हुआ आदमी / रोहित ठाकुर
Kavita Kosh से
एक चलता हुआ आदमी
रेलगाड़ी की तरह नहीं रुकता
वह तो बस थक कर रुक जाता है
सड़क पर और शून्य को ताकता है
सड़क पर थक कर रुका हुआ आदमी
महसूस कर रहा होता है प्यास
वह नाप रहा होता है दूरी
अपने घर का
वह इस संकोच में रुक जाता है
किस से पूछा जा सके
सस्ते दाम वाले होटल का पता
एक चलता हुआ आदमी
इस लिये भी रूकता है
कि चलते हुए उसका
उखड़ जाता है दम
एक चलता हुआ आदमी
अपने चलने का हिसाब
लगाने के लिए रुकता है
कभी एक चलता हुआ आदमी
रूकता है
एक हाथ के निढ़ाल हो जाने पर
सामान को
दूसरे हाथ से पकड़ने के लिए
एक थक कर रुके हुए
आदमी के पक्ष में
कोई नहीं रुकता
न तो इस गोलार्द्ध पर
न उस गोलार्द्ध पर