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चलते चलो / रणजीत
Kavita Kosh से
जो सोता है
उसका दिमाग सोता है
जो जागता है, उसका दिमाग़ जागता है
ऊँगते हुए शरीर का मन भी ऊँघता है
और चलेत हुए शरीर का मन भी
जिसका तन यात्रा करता है बस या रेल में
और पहुँचता है किसी मंजिल तक
उसका मन यात्रा करता है
चिन्तन और मनन में
और पहुँचता है किसी निष्कर्ष तक
तन और मन का वही संबंध है
जो पहियों और गाड़ी का है
इसलिए मन-मस्तिष्क को गतिशील रक्खो
चलते चलो, चलते चलो।