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चलते -चलते / राम सेंगर
Kavita Kosh से
आग लगी गुदड़ी को
फेंक बदहवासी में
भागे हम जलते - जलते ।
सोचा कुछ और नए
अनुभव लेते चलिए
दुनिया से चलते - चलते ।
पेट की मरोड़ों पर
छूछ अबोला रहकर
जीने के जो आसन सीखे ।
काम नहीं आए वे
हम बन कर रह गए
इक लूला बिम्ब आदमी के ।
भद्द हुई अनुभव को
कूट कर निचोने में
जल गये पकौड़े को तलते - तलते ।
सोचा, कुछ और नए
अनुभव लेते चलिए
दुनिया से चलते - चलते ।