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चलो-चलो / दिनेश कुमार शुक्ल
Kavita Kosh से
इसके पहले
कि सूख जायें
आओ चलो
झीलों में
पंख छपछपायें
अस्ताचल से
चुनकर
सूरज की किरणें
लायें और घोसले सजायें
हत्यारी बंदूकों से
उड़ती गोलियाँ
चोंच में दबायें
और उड़े चले जायें।