भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
चल रे कहरबा / उमेश बहादुरपुरी
Kavita Kosh से
ले चल रे कहरबा हमरा पियवा के देश
एके गो सपनमा दिलवा कुच्छो नञ् शेष
ले चल ....
उनखा से तनी हम तो नजरिया मिलइतूँ हल
उनखा से तनी हम तो बोल बतिऐतूँ हल
कोय तो पठा दे हमर पियवा के संदेश
ले चल ....
देखतूँ हल टुकुर-टुकुर उनखर सुरतिया
देखतूँ हल टुकुर-टुकुर मोहनी मुरतिया
ऊ काहे जाके बसला हें आंध्रा परदेस
ले चल ....
भला ऐसन बेदरदी के कउन समझाबे
अनकर दरद जेकरा नजर नञ् हे आबे
ऊ तो हर पल लगाबे हमर दिलवा में ठेस
ले चल ....
दिलवा के बतिया हमर दिलवा में रह गेल
कइलक बेदरदी ई हमरा से कउन खेल
कहिया देखइतइ बहुरूपिया ऊ अपन भेस
ले चल ....