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चहारदीवारी / लीलाधर मंडलोई

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खिड़कियां इतनी खुलीं
कि बेरोकटोक उड़ानें चिडिया की
हवा के साथ धूप नाच सके मनमाफिक
बच्‍चे धमाल में गुंजा दे घर-बाहर
जो चहे हंसे-गपियाए देर रात तक
खुले-अधखिले किवाड़ों में
हमारे घर होने की परिभाषा है

देखते ही चहारदीवारी
होता है शुरू तिलिस्‍म का मुहाना
जहां वजूद की हत्‍या के अहसास का अंधेरा है
जहां अदृश्‍य न्‍यायाधीश की क्रूर उपस्थिति का विश्‍वास
जहां विक्षिप्‍त हताशा में
किसी सुरंग में होने का निचाट अकेलापन
जहां सलाखों से झूलती निर्विकल्‍प वहशियाना हंसी
जहां बेजुम्बिश दीवार से टिके रहने की यंत्रणा
जहां रात बेशिनाख्‍त सवालों पर अधबीच टिकी
जहां एक आदमी आहटों-आवाजों से जुदा
जहां एक लम्‍बी सांस बेगुनाह फेफड़ों से चुकती

एक बात तय है कि वह डरा हुआ कतई न था
कि मामला सरल और इत्‍मीनान भरा होता
दुष्‍ट पछुआ हवाओं के बीच वह खड़ा है

लाल चोंच उठाए एक चिडिया पीठ पर बैठ रही है