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चाँद / राजूरंजन प्रसाद
Kavita Kosh से
आसमान को तका
और बर्फ-सी चमचम
सफेद दरांती की तरह
उतर आया
फेंफड़ों से होकर पूरे जिस्म में
जाना
दूज का चांद था।
(7.6.97)