भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

चाँद / सूर्यकुमार पांडेय

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

देखो कितना गोरा चाँद,
आसमान का छोरा चाँद।
भीड़ जुट गई है तारों की,
जैसे एक ढिंढोरा चाँद।
भरा चाँदनी के शरबत से,
चाँदी जड़ा कटोरा चाँद।
सारी दुनिया सोने लगती,
लाता नींद-झकोरा चाँद।

करता नभ में ड्रामा चाँद,
हम बच्चों का मामा चाँद।
कभी दीखता दुबला-पतला,
बन जाता फिर मामा चाँद।
किरणों वाली शर्ट पहनता,
बादल का पाजामा चाँद।
चुपके से मुस्काता, करता,
नहीं कभी हंगामा चाँद।