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चाँद सा प्यार / शीन काफ़ निज़ाम
Kavita Kosh से
जाने कितने लम्हे बीते
जाने कितने साल हुए हैं
तुम से बिछड़े
जाने कितने
समझौतों के दाग़ लगे हैं
रूह पे' मेरी
जाने क्या-क्या सोचा मैंने
खोया, पाया
खोया मैंने
ज़ख्मों के जंगल पर लेकिन
आज
अभी तक हरियाली है
तुम ने ठीक कहा था
उस दिन -
प्यार-- चाँद-सा ही होता है
और नहीं बढ़ने पाता तो
धीरे-धीरे
ख़ुद ही
घटने लग जाता है