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चाल / दुष्यन्त जोशी
Kavita Kosh से
भलांईं
काछुवै दांईं चाल
पण खड़्यौ ना रह अबोलौ
खड़्यौ पाणी भी
लाग जावैै बांसण
माणस टुरतौ-फिरतौ
अर पाणी बैं'वतौ
करै बधेपौ
जग सारू
अर खुद सारू।