भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

चाल / दुष्यन्त जोशी

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

भलांईं
काछुवै दांईं चाल
पण खड़्यौ ना रह अबोलौ

खड़्यौ पाणी भी
लाग जावैै बांसण

माणस टुरतौ-फिरतौ
अर पाणी बैं'वतौ
करै बधेपौ

जग सारू
अर खुद सारू।