भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

चावल / नेहा नरुका

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

ज़िन्दगी के सबसे स्वादिष्ट चावल जो उसने खाए, वो उसके यार की रसोई में पके थे
कितनी बार उसके सामने दोहराई गई स्वादिष्ट चावल बनाने की संसार की सबसे शानदार विधि
 
उन दोनों ने एक प्लेट में एक ही चम्मच से खाए भरपेट चावल
बातें की उन किसानों के बारे में जिन्होंने उन चावलों को बड़ी शिद्दत से उगाया था अपने खेत में
 
उन दोनों ने अपनी-अपनी जीभ से चावल की प्लेट चाटते हुए कोसा उन उदारवादी बहुराष्ट्रीय कम्पनियों को जिनकी साज़िशें चावलों का स्वाद बर्बाद करने पर तुली थीं
 
चावलों से मोह से वह कभी नहीं निकल पाई
 
पर आज जब उसने अपनी रसोई में पके चावलों का हिसाब करने को कहा तो जैसे उसके अन्दर बजने वाले हज़ारों सितारों के तार टूटकर बिखर गए
 
ऐसा लगा जैसे वह दूध से जल गई है
और अब मठ्ठे को फूँक फूँक कर पी रही है
 
ख़रीद, उधार, कर्ज़, सूद ... इन शब्दों के क्या मानी होते हैं, आज उसने जाना
आज उसने जो जाना उसके बाद चावल का स्वाद ग़ायब हो गया उसके मुँह से
उनकी जगह सिक्के खनकने लगे उसके मुँह में
 
अब जब उसका यार धान के नन्हे पौधे खेत में रोपेगा तो उसे याद नहीं करेगा
अब जब वो केले के पत्ते पर भात खाएगी तो अपने यार को भी याद नहीं करेगी
  
वो दोनों अलग-अलग जगहों पर किसानों और कम्पनियों पर हुई बहसों में शामिल होंगे
पर भूल चुके होंगे चावल उगाने-पकाने-खाने पर बजने वाला धीमा-धीमा संगीत
वे दोनों अब अगली बार मिलने पर स्वाद का आठवाँ सुर भूल चुके होंगे ...।