भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
चिंतन, कुछ अवशेष / प्रेमलता त्रिपाठी
Kavita Kosh से
धर्म टिका जिस बेदी वह,अपना देश ।
वेद ज्ञान सब पाठ पढ़ायें, दें संदेश ।
ज्ञात रहे मनु कर्म हमारा,जीवन सार,
वीत राग वैराग बढ़ायें,हो क्यों क्लेश ।
चहक उठे नित अपनी क्यारी,नीड़ सँवार,
फिर अमराई बौराये हो,प्रीति निवेश ।
जाति धर्म सब भेद मिटायें,नर या नार,
भोजपत्र पर लिक्खा हमने,सहज विशेष ।
मौन रहे क्यों कलम हमारी,करें विचार,
क्षुब्ध हृदय होगा क्या चिंतन,पल अनिमेष