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चिंतन जो जगाया है / प्रेमलता त्रिपाठी
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दृगों में भाव चिंतन जो जगाया है।
उजाले को न कोई रोक पाया है।
वरद जीवन हमें पाना मिले अवसर,
नियति ने कर्म पूजा ही सिखाया है।
दिशाएँ दे रहीं संदेश नाविक हम,
भँवर से दूर नौका को बचाया है।
अमरता कौन चाहेगा स्वयं खोकर,
सरस करना हमें बस छोड़ माया है।
करे आकुल हृदय तन को क्षणिक जीवन,
न कर क्रंदन नियति को मौन भाया है।
करो सब मृत्यु का स्वागत सजग होकर,
प्रलय में ही सर्जन सुंदर समाया है।
खुली है प्रेम मधुशाला मधुप गुन गुन
सुबह स्वर्णिम दिवस ने गीत गाया है।