भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
चिंता (1) / सत्यनारायण सोनी
Kavita Kosh से
चिंतित है
हाड़ी काटता मजदूर,
कैसे पार पड़ेगा
इतनी-सी दिहाड़ी में
सायं का राशन?
चिंतित है
जमींदार भी,
बहुत महंगे
हो गए हैं दिहाडि़ए।
1991