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चिड़कली रो बुढ़ापो / कुंदन माली

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बालपण में
सुण्यो चिड़कली
ओ ओखाणो
’’कातिया जिण रा
सूत
जाया जिण रा
पूत’’

बुढापै में
हुई बावली
फिरै पूछती
कठै सूं लायौ
म्हारी आंख्यां रौ तारौ
इसी डोढ़ी अकलः
ओ भभूत।