चिड़िया का घर / प्रकाश मनु
चिड़िया को घर बनाना है
चिड़िया के पास कुछ खास नहीं,
मगर क्या नहीं है चिड़िया के पास
तिनके है घास है
जरा सी कला-कला
ढेर सा उछाह
...और एक बड़ी जिजीविषा
धूप और पानियों और सादा आसमानों
की तरह फैली
दूर तलक....
आखिर क्या नहीं है चिड़िया के पास!
सूतली!
हां सूतली...
चिड़िया परेशान!
महानगर में सूतली...?
मगर डर क्या...
अगले ही पल वो उड़ी
और उड़ के गई वहां जहां ढीली खटिया पर बैठा कवि
लिखने के लिए कविता
पढ़ रहा है कोई किताब
चिड़िया देखती है कवि की कविता, किताब, चेहरा
और भरपूर दृष्टि फैला देती है चारपाई पर,
उसकी चौकन्नी नजरें देख लेती हैं
चारपाई का कौन-सा कोना है उसके काम का।
एक निर्भीक दृष्टि डाल कवि के चेहरे पर
चिड़िया शुरू करती है अपना काम.....
आराम से
चोंच की ठूंग मार-मारकर निकालती है
मूंज, निकालती है सूतली
दस मिनट-मुश्किल से दस मिनट....
ओर अब दुनिया उसकी है
उसका है जहां
चिड़िया चोंच में भर ले जाती है उतना
जितना भी उसके बस में है....
और यल्लो ...चिड़िया पंखों पर....
नहीं-चिड़िया पर-पर है
चिड़िया है घर की रानी चिड़िया है सोनापरी
बिटिया है लाडली सूरज की....
घास, तिनके, धूप, उत्साह के साथ मिलाकर सूतली
अपनी अचूक कला से
रचेगी वह घर....
जरूर रच लेगी
कल तलक!
कैसा भी हो माहौल
कैसा भी घुटनभरा वक्त
महामारी युद्ध या अकाल
चिड़िया को घर बनाने से भला कौन
रोक पाएगा?