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चिड़िया नहीं रही / रंजना जायसवाल
Kavita Kosh से
चिड़िया
तुम नहीं रही
चिड़ा भी
चला गया कहीं
उजाड़ पड़ा है
सपनों के तिनकों से बना
तुम्हारा अपना घर-संसार
वह घर
जिसमें कभी
चिड़े के साथ
प्रेम के विविध रंग
देखे थे तुमने
कभी भूख से चीखते
बच्चों के
दाना-पानी के लिए
लगातार परों को
चलाती रही थी
और फिर
बच्चों के चले जाने पर
उदास बैठी रही
इतनी उदास
लगा ही नहीं था
तुम उपस्थित हो वहाँ
चिड़िया
इधर तुम कम ही दीखती थी
मेरा घर संगीत –विहीन हो गया था
जाने कब तुम बाहर जाती
कब लौटती
जब भी मिलती
कुछ सोचती मिलती
चिड़िया क्या सोचती थी तुम
प्यार की बातें
बच्चों की बातें
या फिर यह
कैसे छोड़कर जाओगी
स्मृतियों का यह घर
जहां रहती है एक अकेली स्त्री
तुम्हारी तरह।