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चिर-वियोगिनी / सुरेन्द्र झा ‘सुमन’

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चिर वियोगिनी प्रकृति प्रियाकेर भरल आँखि ई साओन-भादव!
विरह - उषम ग्रीषम तापित तन, प्रथम दिवस आषाढ़क उन्मन
पावस-पलक वेदना - दुर्भर टप - टप गलइछ जीवन यौवन
तकरहि मर्मक व्यथा - कथा कहि रहल गलित भय जलद करुण रव
चिर वियोगिनी प्रकृति प्रियाकेर भरल आँखि ई साओन-भादब।।1।।

की अरण्य-कन्या पति - त्यक्ता वा बाल्मीकि आश्रमक कविता?
वृन्दावन - योगिनी वियोगिनि चिर - अनुरक्ता तदपि वंचिता
संचित कय की तकर अश्रु - कण बिन्दु - बिन्दु वरिसय घन अनुभव?
चिर वियोगिनी प्रकृति प्रियाकेर भरल आँखि ई साओन-भादव।।2।।