भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

चुप्पी / गोबिन्द प्रसाद

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज


तुम्हारे होठों पर
चुप्पियाँ
खिल आई हैं
जंगली फूलों की तरह
और मैं तुम्हारे होठों को नहीं
न जंगली फूलों को
देखना चाहता हूँ

मैं चाहता हूँ :
तुम्हारी चुप्पियों को देखना
उन से बातें करना
... चुप्प होकर