भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

चुप्पी का राज / विष्णुचन्द्र शर्मा

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

गन्ने के खेतों की मीठी गाँठें
चुप हैं।
वह नहीं जानती
कौन-सा कॉर्पोरेट घराना
खींच लेगा उसका रस।
मैं चाहकर भी अपने ही देश के गन्नों से
बतिया नहीं सकता हूँ।
मैं जानता हूँ
कब वह खोल दे अपना भय
कब छिपा ले अपना अनकहा दर्द!