भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
चूड़ियाँ / नन्दकिशोर नवल
Kavita Kosh से
हवा में खनकती हैं छूड़ियाँ तुम्हारी,
झनकता है अन्धेरा
सँपेरा बजाता है बीन
नाग-सा ठनकता है मन मेरा ।