भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
चेताओनी / पंकज कुमार
Kavita Kosh से
काल्हि अन्हरोखेसँ
अहलदिली पैसल छैक ओकर मोनमे
तेँ बेर-बेर कय रहलैक अछि प्रयास
एकटा देबाल उठेबाक लेल
सभ किछु विस्मृत कय
इतिहासमे आनय चाहैत छैक बाढ़ि
जाहिमे भसिया देबाक मनसा राखि
अपना भरि कय रहलैक अछि सभटा ब्योंत
पसरल मुकमुकी में जड़ि रहल छैक स्मृति
चहुँ दिस करमान लागल लोक
गदमिसान केने फड़फड़ा रहलैक अछि
अपन झंडा फहरेबाक लेल
उछाहक संगहि दुरभिसन्धि करबाक कुचक्र
ओकर शोणितमे अछि
तेँ विद्वेषक चोला पहिरने बेमत हाथी जकाँ
हरबिरड़ो मचौने अछि सगर देसमे
असमानकेँ छुबैत साम्प्रदायिकताक नमहर मुँहकेँ
भेटि रहल छैक आइ धरि दाना-पानि
चुप्पे-चाप जोति रहलैक अछि ओ ओहि खेतकेँ
बाउग कयल जा रहलैक अछि आक्रोशक बीहनि
देर-सबेर ई अवस्स अंकुरित होयत
पैघ त्रासदीक रूपमे।