भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

चेहरा / मक्सीम तांक

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

एक अजायबघर में
कवि का चेहरा टँगा हुआ है
भावशून्य निर्जीव निरीह

इसे तोड़ दो
या फिर कहीं छिपा दो

सोचो
अगर कहीं यह
ऐसा होता
तो अब तक ज़िन्दों में होता