भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
चेहरे (4) / हरीश बी० शर्मा
Kavita Kosh से
रतजगे मेरे
भाव घनेरे
कैसे प्रकटूं तेरे-मेरे
तीजे नाम पे
तलपट हो गई
इतने तेरे-उतने मेरे
टूटे सारे पहरे