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चेहरे / तुलसी रमण

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चेहरे वही हैं
वर्षों पुराने
छोटे शहर के बड़े चेहरे

चौराहे सीढियाँ रास्ते भी
सब वही हैं

अचानक किसी मुरझाये चेहरे की
भार जाती है माँग
धीमे सजग कदमों में
बदल जाती
वर्षों लम्बी कुलाँचे

जाने किस सुबह या शाम
चुपचाप उग आते हैं
किसी चेहरे के सफ़ेद बाल

दूसरे दिन का
इंतज़ार नहीं करते
उग आने को निष्ठुर बाल
पाले से भीगे सूने रिज पर
दाएं-बाएं झूमता बड़बड़ाता
देर रात कोई पियक्कड़ चेहरा
रात की ड्यूटी से लौटता हवलदार
या आखर-आखर बीनता आँख
मुद्रणालय का कम्पोज़िटर
प्रेमिका के घर की और जाता
कोई ज़िद्दी प्रेमी
एक पंक्ति की लय में
शराबघर से उठ आया कोई सच्चा कवि

कब ग़ायब हो जाता है
कोई जाना-पहचाना चेहरा
चौराहे को रहता उसका इंतज़ार

चेहरों पर चमकता दिन का सूरज
इन पर ढलती शाम
चेहरों पर पृथ्वी का प्रतिबिंब
इन्हीं पर उग आता है चाँद

चेहरे वही हैं पहाड़ी शहर के
हँसमुख और उदास चेहरे

वे हमें और हम उन्हें पहचानते हैं
लेकिन जानते नहीं कि
वे हम हैं
या हम वे हैं!