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चौराहे पर ज़िंदगी दो / रजनी अनुरागी
Kavita Kosh से
दो
चौराहों पर मिलते हैं ताली पीटते हाथ
भिन्न-भिन्न मुद्राओं में
आँखें नचाते, कमर मटकाते
गहरे मेकअप में अपने को चमकाए
अपनी लाचारी को छिपाए
सबकी सलमती की दुआ माँगते
कड़ी धूप हो या कड़कड़ती हाड़ तोड़ती सर्दी
इन्हें तो आना ही होता है
चौराहे पर ताली पीटने
खुद के जीवित होने की पहचान कराने
(जैसे ताली पीटना ही इनका आफिसियल काम है)
ये चले आ रहे हैं अनंत काल से
सबकी सलामती की दुआ माँगते
पर इनके लिए दुआ कौन करे
इन्हें तो आज तक इंसान ही नहीं माना गया है
न समाज में और न सरकारी रिकार्ड में