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छंद 274 / शृंगारलतिकासौरभ / द्विज
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दोहा
(कवि-कुल-परिचय)
अवध-ईस मंडन-भुवन, ‘दरसनसिंह’ नरेस।
जिनके जस सौं सेत भौ, दिसि-दिसि देस-बिदेस॥
भावार्थ: संसार के आभूषण अयोध्या नरेश महाराज ‘दरशनसिंह’ जिनकी कीर्ति से दिग्दिगंत धवलीकृत हुआ।