छह / बिसुआ: फगुआ / सान्त्वना साह
चैत हे सखी छठी माय बरतिया, आरो बसन्त नवरात्र हे
कष्टी करै षष्टी, भरी भरी सूपवा, सतमी केॅ पारन निस्तार हे।
बैसाख हे सखी गहलै जे कौआ, लागै छै ऐतै चितचोर हे
सब के सजनवा बिनिया डोलावै, हमरो सजनवा कठोर हे।
जेठ के सखी पूजै बिदकरनी, भुइयाँ माटी मटकोर हे
बुनी जे झड़तै रामा, पड़तै जब पनिया, भीजतै रसे-रस पोरे-पोर हे
अषाढ़ हे सखी खेली झुमरिया, ओठंगी कॅ पायालागी ठाड़ हे
अँखिया सउनमा, ऐंगना जमुनमा, टिकुली निखरलै लिलार हे।
सावन हे सखी बुनमा जे झड़ी-झड़ी, माटी भीजाबै पोरे-पोर हे
कादो चौकी करी, रहसै किसनवा, गोरिया के मनवा चकोर हे।
भादो हे सखी एतवार सिंहो, नेमो-टेमो सेॅ भव पार हे
कच्चादूध गंगाजल, फूल-पान-पतिया, सूरजो केॅ अरगो के ढार हे।
आसिन हे सखी कान्हा हरै मति, सुधि-बुधि जग बिसराय हे
सोलह सिंगार करी, नाचै भोला हरि, सुरपुर सुमन बरसाय हे।
कातिक हे सखी कैतकारो दिनमा, गहलै जे कौआ भिनसार हे
ऐंगना दुअरिया, खरिहान भितिया, लेबी मुनी कोठी तैयार हे।
अगहन हे सखी झनिया के छेका करी, आबी जे गेलै दोनो भाय हे
अबकी लगनमा, करबै सगुनमा, गौना लियौनमा थिराय हे।
पूस हे सखी हरियर घास देखी, झप-झप बुली बुली जाय हे
पूसो के ओसो के, बड़ी रे गुनमा, आँखी के ज्योति बढ़ाय हे।
माघ हे सखी कुसुमी चुनरिया, कजरा शोभै छै दोनों आँख हे
घुँघरैलो केसिया, ओझरैलो चोटिया, पूरबा करै छै ताक झाँक हे।
फागुन हे सखी फुनगी पर कली खिलै, बगिया मेॅ आबै बहार हे
तितली जे उड़ी-उड़ी, रसिया रिझावै, भौंरा करै गुंजार हे।