भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
छोटी कविताएँ-2 / सुधा गुप्ता
Kavita Kosh से
एक मीठी बात
एक मीठी बात
रह-रहकर
मन में
नन्हे घुँघरू -सी छनकती है
फिर
ज़िन्दगी पे प्यार आया
फिर तबीयत बदलती है…
जिस उदासी से इस कदर
वाबस्ता थी
उसे परे फेंक हटाने को
उससे नज़ात पाने को
कसमसा उट्ठा है दिल
बरसों से सूनी
चाह की कलाई में
फिर
कोई शोख़ चूड़ी खनकती है…
-0-
रौशनी का गुच्छा
अँधेरे शहर में
काले डरावने मनहूस जंगल में
झिलमिलाता है
रौशनी का एक नन्हा गुच्छा:
जुगनुओं का झुप्पा-सा
वह तुम हो !