भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
जंगल-जंगल / विश्वासी एक्का
Kavita Kosh से
अगर तुमने जँगल छीना
दहक उठेगा बसन्त
बौरा जाएँगी अमराइयाँ
जल कर काली हो जाएगी कोयल ।
कैरी के बदले
पेड़ों पर लद जाएँगे बारूद
तुम्हारे छूने मात्र से
हो जाएगा विस्फोट…
तुम्हारे हाथ कुछ नहीं आएगा
न जली लकड़ियों की राख
और न ही कोयला ।