भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
जउन भुईयाँ खेले / हरि ठाकुर
Kavita Kosh से
जउन भुईयाँ खेले, जउन भुईयाँ बाढ़े
तउन भुईयाँ के अब छुटत
आज छुटत अँगना, छुटत अँगना
कलपत जियरा
तलपत हियरा
नैना नीर बहाए
छूटे घर गाड़ी
गाँव खेत बारी
परे पिंजरा म बनके सुआ ना
आज छुटत अँगना, छुटत अँगना
तुलसी उझरगे
गोंदा बगरगे
मोंगरा लागिस मुरझाए
छूटे अमरईया
नदिया अउ तरिया
डरे पैजन, झिझकत कंगना
आज छुटत अँगना, छुटत अँगना