भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

जड़ों वाला कवि हूं / विष्णुचन्द्र शर्मा

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

बस मैं एक सजीव पेड़ हूं
जिसकी जड़ें नीचे तक गई हैं सादतपुर में।
मेरे न रहने पर भी जिसकी पत्तियां हवा से
बतियाती हैं; धूप और वर्षा झेलते हुए नहाती हैं।
जिससे फल तोड़ते हैं बच्चे अकेले या सदलबल
दीवार फांदकर चखते हैं जामुन
तोड़ते हैं अमरूद
और एक पकी बेल देखकर साधते हैं डंडा
मैं ऐसा ही एक
जड़ों वाला पेड़ हूं