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जद-जद पड़ै काळ / नीरज दइया
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जद-जद पड़ै काळ
बिलखै भूखा टाबर
बै सीखै रोवणो
अर रोवतां-रोवतां
भूल जावै
रोवण री आंट!
जद-जद पड़ै काळ
बधै टाबरां री उमर
बै भूल परा भूख
माइतां सागै सीखै तोड़णा-
काळ रा दिन
बिखै री रातां!