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जन-समुद्र / बलदेव वंशी
Kavita Kosh से
समुद्र की लहरों के साथ
लोग खेलते हैं
जबकि समुद्र भी खेलता है लोगों के साथ...
लहरों को अपनी ओर आता देख
पाँव उचका
उछल जाते हैं कौतुकी लोग
पर ये लहरें
उन्हें अपने सर्पमुखी फन पर उठा
किनारे पर छोड़ आती हैं--
लो, यह तुम्हारा किनारा है
इसे थामो !
लहरें
लोगों के किनारे जानती हैं
जबकि इन लोगों को पता नहीं
समुद्र का किनारा कहाँ है
जब-जब किनारा लांघते हैं लोग
तो ये लहरें उन्हें भिगोती-उछालती ही नहीं
अपने में समो लती हैं
जिन हाथों से थपकी देती हैं मस्ती-भरी
उन्हीं से पकड़ कर
बरबस,
भीतर डुबो देती हैं !
क्योंकि इन बेचारे लोगों को
पता नहीं,
समुद्र का किनारा कहाँ है !