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जब-जब जन्म लूंगा / नवल शुक्ल
Kavita Kosh से
जब-जब जन्म लूंगा
कुछ नहीं काटूंगा
केक तो कतई नहीं
एक पेड़ लगाऊंगा।
कुछ नहीं बुझाऊंगा
रोशनी तो कतई नहीं
दिशा बन जाऊंगा।
कुछ नहीं फोड़ूंगा
बैलून तो कतई नहीं
मन बनाऊंगा।
बिल्कुल नहीं नाचूंगा
न लगाऊंगा ठहाके
हो सका तो
छूट गई जगहों
और भूल गए लोगों की अनुपस्थिति
धीरे-धीरे सहलाऊंगा।