भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

जब मैं बोला / रामइकबाल सिंह 'राकेश'

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

भीषण न्याग्राप्रपात ठमका
चपला चमकी पायल चमका
नभ-तल कड़का ठनका ठनका
जब मैं बोला

पुच्छलतारामण्डल बोला
अंगारकान्त मंगल बोला
अर्णव में बड़वानल बोला
जब मैं बोला

लावा बन कर बादल बोला
उल्का लपटों में जल बोला
उदयाचल, अस्ताचल बोला
जब मैं बोला

मरुथल में गंगा लहराई
ली बिस्युबियस ने अँगड़ाई
क्राकाटो आने जमुहाई
जब मैं बोला

विस्फोटक भूमिकम्प आया
नदियों की पलट गई काया
सागरतल-सा थल लहराया
जब मैं बोला

नगपति नभ के ऊपर बोला
हिमशिलाखण्ड हर-हर बोला
सम्वत्सर मन्वन्तर बोला
जब मैं बोला

तन्द्रा, पठार, जंगल बोला
दूवदिल, नील कमल बोला
चम्पा-कदम्ब-पाटल बोला
जब मैं बोला

ऋत-पथ पर चलने लगा पवन
ऋत पथ पर करने लगे भ्रमण
रवि-शशि पावक लघुतम ग्रहणगण
जब मैं बोला

आरण्यक, ताण्डय महाब्राह्मण
उपनिषद्, संहिता, षड्दर्शन
बन गए विश्व के उद्बोधन
जब मैं बोला

खिंच गया चित्र अन्तर्पट पर
परामनन्दों से भी बढ़कर
जो मिटे नहीं सड़कर, गलकर
जब मैं बोला