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जब से तोंहे / कस्तूरी झा 'कोकिल'
Kavita Kosh से
जब सें तोहें बिछुड़ी गेलहौ आँख नैं लागै छै।
प्राण उछीनों लागै हरदम पाँख नैं लागै छैं
की करियै कुछ सूझै नैं छै, घोर अनहेरा,
गरजी-गरजी नाम लैं छीहौं, हाँक नैं लागै छै।
भूख पियास तनिक नैं लागै, नैनाँ देखै राह,
लोटा गिलास पानी से भरलऽ छाँक नैं लागै छै।
गीत, ग़ज़ल, कविता लिखी केॅ गाना हरदम,
कतनों चाहोॅ फटै करेजा, फाँक नैं लागै छै।