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जहिना के तहिना / कस्तूरी झा ‘कोकिल’

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हम जहिना के तहिना गे ना।
आजादी के बहुत साल में बहिना गे।

जब-जब हमरा लगल बुखार,
तुलसी के काढ़ा तैयार।
डाक्टर बाबू बड़ा अजनबी,
नेता हम्मर ठगना गे।

आजादी के बहुत साल में बहिना गे,
हम जहिना के तहिना गे ना।

मुखिया जी सुखिया भै गेलखिन,
महल अटारी सेहो बनैलखिन।
हमर झोपड़िया कानै कपसै,
कहाँ कोय लोर पोछना गे।

आजादी के बहुत साल में बहिना गे,
हम जहिना के तहिना गे ना।

महँगी बढ़ल उपज नहि बढ़लै,
ठेठी हल के साथ न छुटलै।
बेरोजगार पढ़ल छथि घर में,
केना गढ़ायब गहना गे।

हम जहिना के तहिना गे ना।
आजादी के बहुत साल में बहिना गे,

एके सड़िया सब दिन पेन्हली,
साया आँगी आँख न देखली।
ढिबरी लिखल भाग में हमरा,
बिजली बारब सपना गे।

हम जहिना के तहिना गे ना।
आजादी के बहुत साल में बहिना गे,
हम जहिना के तहिना गे ना।
आजादी के बहुत साल में बहिना गे।

सुधुवा सब दिन गाय चराबै,
बिमली बकरी के टहलाबै।
करम जरल जतपिसनी बनली,
दिन बितैये कहुना गे।

हम जहिना के तहिना गे ना।
आजादी के बहुत साल में बहिना गे,
हम जहिना के तहिना गे ना।

-बरौनी संदेश, 20 जुलाई, 1981