भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

जाग दीप मेरे / रामगोपाल 'रुद्र'

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

जाग दीप मेरे!

तमसावृत व्यसोमवृत्‍त,
भयमय भू भोगचित्‍त;
दाहविकल सिन्‍धु सकल,
अनल-अनिल प्रेरे।

भव के विज्ञानचरण
न्योत रहे हिंस्रमरण,
कौन इस विनाशमुखी
हय का मुँह फेरे?

तेरा तपलीन ध्यान
लाए मंगल बिहान;
ज्ञान-भान का वितान
तम-तुहिन न घेरे।