भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
जात के पानी / मथुरा प्रसाद 'नवीन'
Kavita Kosh से
एक बात कहियो?
सागर में
डुबकी लगाबै ले पड़तो
अउ
अपन अंतरात्मा के
जगाबै ले पड़तो
देखऽ हा नै
बाबू साहेब के
फुलवारी में कुइयाँ
जहाँ
नै घैला चढ़ऽ हो
न टुइयाँ
ओजा भरल जा हो
दरबारी कलसी
जहाँ रगड़ल जा हो
सोना के मलसी
ई जात अर पात
अलग कैने हो
तोहर पानी अ भात