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जामुनी साड़ी / देवनीत / रुस्तम सिंह

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एक शाम मैं
सब डोरों से टूट
जा अटका था
शाम के एक कोने …. कनॉट प्लेस

कई रंगों की पतंगें

शाम अन्दर
घूम रहीं थीं कितनी औरतें

चाँदी की नदी में तैरती
जलपरियाँ

उन रंग-परियों में से
रंग-परी थी एक
सामने चल रही

जामुनी साड़ी

उसकी नाभि के नीचे
कहीं से
बाँसुरी के मुँह से
फैल रहे थे सुर

उसके पैरों पर बहती
जब वह चलती
फ़ाल लहराती

हवा का एक पँख
उसके सामने से उड़ता
मेरी ओर

मेरे पास-पास आता
पास-पास होता जाता

नीचे-नीचे होता
धरती से लग
मिट जाता

वह दूसरा क़दम लेती
एक और पंख उड़ता
मेरी ओर

फिर और
एक और

देखते-देखते
मेरे सामने
फैल गई थी फ़ाल

सारी औरतें ग़ायब हो गई थीं
फ़ाल के पीछे

मैं अपने सारे रंग
खो रहा था

अब मैं
जामुनी हो गया था ।

मूल पंजाबी भाषा से अनुवाद : रुस्तम सिंह