भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
जिनगानी रो आंच/ कन्हैया लाल सेठिया
Kavita Kosh से
जिनगानी री
आंच में सेकै
भूखी मौत
आपरी रोटी,
धीमी पडै़‘र
फेर सांसां स्यूं सिलगा‘र
कर लै सजळी,
स्यात है हाल
रोटी री कोरां काची !