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जिनगी रीत रहल / मुनेश्वर ‘शमन’
Kavita Kosh से
पल-छिन बीतल
दिन बीतल
बीतल मास बरीस।
फिनु बच्छरो-बच्छर बीतल।
आउर हम
लेके टूटल सपना के लाश /
अपन कंधा पर /
चलइत रहऽ ही
भोर से साँझ तक।
अनन्त-अछोर /
संघर्ष के ओर ?
अन्हेरा जमल जाहे /
पियाज़ के तह के तरह
परत-पर-परत।
बढ़ल आवे हे
हमरा निगलय ले।
जिनगी-
एकरा से /
उबरय के कोसिस में
रीत रहल/ बीत रहल