भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
जीने की लत / शहरयार
Kavita Kosh से
मुझसे मिलने आने वाला कोई नहीं है
फिर क्यों घर के दरवाज़े पर तख़्ती अब है
जीने की लत पड़ जाए
तो छूटती कब है।