भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

जीरादेई में चमके सितारा / जनार्दन राय

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

जीरादेई में चमके सितारा
बनके राजेन्द्र भारत दुलारा।
जीरादेई में चमके सितारा॥

दीनता, दासता-पाश में थी,
छटपटाती रही भारत माता।
तोड़ने नाग-पाश को आया,
भारत माता का बेटा पियारा।
जीरादेई में चमका सितारा॥

जब गुलामी का तम छा रहा था,
देश के कोने-कोने में जमकर।
लाके स्वाधीनता का उजाला,
दूर फेका वतन का अन्धेरा।
जीरादेई में चमका सितारा॥

जिन्दगी सादगी की बिताकर,
ऊँचे भावों को सब दिन संजोया।
सेवा-भाव से जीवन सजाकर
बना दीनों का अनुपम सहारा।
जीरादेई में चमका सितारा॥

उसकी बौद्धिक प्रखरता परख कर,
पूज्य बापू ने सहयोग पाया।
खूब निकला गुणाकर मेधावी,
देश को दे विधान जग से न्यारा।
जीरादेई में चमका सितारा॥

देश-वासी आभारी सदा था,
शील, गुण, रूप, करुणा निरखकर।
किया सम्मान उसका निराला,
राष्ट्रपति बनाके दुबारा।
जीरादेई में चमका सितारा॥

-समर्था
29.5.1984 ई.